शुक्रवार, १२ नोव्हेंबर, २०२१

सेनापती बापट

🖥️ महाराष्ट्र तंत्रस्नेही शिक्षक समूह 🖥️
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       🇮🇳 यशोगाथा थोरांची  🇮🇳
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  संकलन ~ श्री अविनाश पाटील 
बापूसाहेब डी. डी. विसपूते माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय वलवाडी ता. जि. धुळे 
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           पांडुरंग महादेव बापट
             उर्फ सेनापती बापट

              (भारतीय क्रांतिकारक)
       जन्म: १२ नोव्हेंबर १८८०
                       (पारनेर)
       मृत्यू: २८ नोव्हेंबर १९६७
                        (बाम्बे)

टोपणनाव : सेनापती बापट
चळवळ : भारतीय स्वातंत्र्यलढा
वडील : महादेव
आई : गंगाबाई
शिक्षण : डेक्कन कालेज पुणे
                  पांडुरंग महादेव बापट हे भारतीय क्रांतिकारक स्वातंत्र्यसैनिक होते. त्यांनी केलेल्या कार्यामुळे त्यांना सेनापती असे संबोधण्यात येऊ लागले. 

📚 जन्म व शिक्षण
                 महादेव तसेच गंगाबाई बापट यांचे हे पुत्र होत. त्यांचा जन्म पारनेर (जिल्हा अहमदनगर) येथे झाला.  त्यांचे प्राथमिक शिक्षण व माध्यमिक आणि बी. ए. पर्यंतचे उच्च शिक्षण मुख्यत्वे करून पुणे येथे झाले. त्यांनी अहमदनगरला मॅट्रिकची परीक्षा दिली, तेव्हा त्यांना संस्कृतची 'जगन्नाथ शंकरशेठ शिष्यवृत्ती' मिळाली. त्यांना बी. ए. परीक्षेत इ. स. १९०३ साली उत्तीर्ण झाल्यावर मुंंबई विद्यापीठाची शिष्यवृत्ती मिळवून ते इंग्लंडला गेले. एडिंबरो येथे त्यांनी इंजिनिअरिंग कॉलेजमध्ये प्रवेश घेतला. पारनेर तालुक्यातील गणेशखिंड येथील गणपती मंदिरात ते राहत असत. या मंदिरापासून सेनापती बापटांचे पारनेर शहरातील मूळ घर यांदरम्यान मोठा भुयारी मार्ग आहे. या मार्गाची सध्या पडझड झाली आहे. त्यांचे पारनेर मधील घर सेनापती बापट स्मारक म्हणून ओळखले जाते.

💁‍♂ कार्य
          स्वातंत्र्यवीर सावरकर यांनी गुप्तपणे बॉम्ब तयार करण्याची कला शिकून घेतली आणि त्यानंतर सेनापती बापट आणि हेमचंद्र दास या आपल्या सहकारी मित्रांना हे तंत्र शिकण्यासाठी पॅरिसला पाठविले. असे असले तरी "माझ्या बाँबमुळे एकही बळी गेला नाही. ते फक्त आमच्या कार्याकडे ल़क्ष वेधण्यास केले गेले होते" असे त्यांचे म्हणणे होते. मात्र तरीही अलीपूर बाँब खटल्यात सहभागी असल्याचा त्यांच्यावर आरोप होता. इ. स. १९२१ पर्यंत ते स्वतःच्या जन्मगावी शिक्षक म्हणून राहिले आणि त्यांनी समाजसेवा हेच व्रत घेतले. पहाटे उठल्याबरोबर गावचे रस्ते झाडणे व शौचकूप साफ करणे हे व्रत त्यांनी जन्मभर निभावले.
                  इ. स. १९२१ ते इ. स. १९२४ या कालखंडात पुणे जिल्हयातील मुळशी पेटा येथील धरणग्रस्त शेतकऱ्यांना जमीन मिळविण्याकरिता सत्याग्रहाचे आंदोलन चालवले. या आंदोलनादरम्यान बापट यांना सेनापती म्हणून ओळखले जाऊ लागले. या आंदोलनात त्यांना तीनदा कारागृहावासाची शिक्षा झाली. शेवटची सात वर्षे सक्तमजुरीची होती. संस्थानांतल्या प्रजाजनांच्या हक्कांकरिता चालू असलेल्या आंदोलनांत भाग घेऊन त्यांनी संस्थानाच्या प्रवेशबंद्या मोडल्या व त्याबदल कारागृहवासही सोसला. स्वातंत्र्योत्तरकाळातही भाववाढ विरोधी आंदोलन, गोवामुक्ती आंदोलन, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन इत्यादी आंदोलनांमध्ये त्यांनी पुढाकार घेतला.
                   नोव्हेंबर १९१४ मध्ये सेनापती बापटांना मुलगा झाला. त्याच्या बारशाच्या निमित्ताने बापटांनी पहिले भोजन हरिजनांना दिले. एप्रिल १९१५ मध्ये ते पुण्यात वासूकाका जोशी यांच्या 'चित्रमयजगत' या मासिकात नोकरी करू लागले. त्यांनी लोकमान्य टिळकांच्या इंग्रजी वृत्तपत्रात, दैनिक मराठातही नोकरी केली आहे. दैनिक मराठा सोडल्यानंतर ते लोक-संग्रह नावाच्या दैनिकात राजकारणावर लिखाण करू लागले. त्याचबरोबर डॉ. श्रीधर व्यंकटेश केतकर यांच्या ज्ञानकोशाचे कामही ते बघत. बापटांच्या पत्नीचे ४ ऑगस्ट १९२० रोजी निधन झाले. त्यानंतर सेनापती बापट मुंबईतीत झाडूवाल्यांचे नेतृत्व करू लागले. त्यासाठी त्यांनी मुंबईच्या 'संदेश' नावाच्या वृत्तपत्रात एक मोठे निवेदन दिले. झाडू-कामगार मित्रमंडळ नावाची संस्था त्यांनी स्थापन केली. सप्टेंबर १९२९ मध्ये, झाडूवाल्यांशी मानवतेने वागण्याचा पुकारा करीत बापटांनी गळ्यात पेटी लटकावून भजन करीत शहरातून मुंबईच्या चौपाटीपर्यंत मोर्चा काढला. शेवटी त्यांनी पुकारलेल्या संपाची यशस्वी सांगता झाली.
              अंदमानमध्ये जन्मठेपेची शिक्षा भोगताना इन्द्रभूषण सेन यांनी आत्महत्या केली होती, उल्लासकर दत्त हे भयंकर यातना सहन करीत वेडे झाले होते. हे पाहून, सेनापती बापटांनी अंदमानमध्ये काळ्या पाण्याची जन्मठेप भोगत असलेल्या कैद्यांच्या सुटकेसाठी डॉ. नारायण दामोदर सावरकर यांच्यासह एक सह्यांची मोहीम चालविली. त्यासाठी ते घरोघर फिरत, लेख लिहीत, सभा घेत. या प्रचारासाठी बापटांनी ’राजबंदी मुक्ती मंडळ' स्थापन केले होते. इ.स.१९४४ साली नागपूर येथे सेनापती बापट यांच्या अध्यक्षतेखाली विद्यार्थी परिषदेचे आयोजन करण्यात आले.

🏵 गौरव
       पुण्यातील १५ ऑगस्ट, इ. स. १९४७ साली ध्वजारोहण सेनापती बापटांच्या हस्ते करण्यात आले. पुण्यातील एका सार्वजनिक रस्त्याला त्यांचे नाव देण्यात आले आहे.

🎞 लघुपट
     सेनापती बापट यांच्या कार्यावर राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान (NCERT) यांनी एका लघु माहितीपटाची निर्मिती केलेली आहे.

             🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳

🙏🌹 विनम्र अभिवादन 🌹🙏
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          स्त्रोत ~ WikipediA
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गुरुवार, ११ नोव्हेंबर, २०२१

भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आझाद

🖥️ महाराष्ट्र तंत्रस्नेही शिक्षक समूह 🖥️
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       🇮🇳 यशोगाथा थोरांची  🇮🇳
             
   
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 संकलन ~ श्री अविनाश पाटील 
बापूसाहेब डी. डी. विसपूते माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय, वलवाडी ता. जि. धुळे 
                                                       🏢📰⛓️🇮🇳👨🏻‍🦱🇮🇳⛓️📰🏢
          
      भारतरत्न मौलाना अबुल
            कलाम आझाद


    जन्म : 11 नवम्बर 1888
         (मक्का, सउदी अरब)
   मृत्यु : 22 फ़रवरी 1958
         (मृत्यु स्थान दिल्ली)

पूरा नाम : मौलाना अबुलकलाम मुहीउद्दीन अहमद
अन्य नाम : मौलाना साहब
अभिभावक : मौलाना खैरूद्दीन    
                     और आलिया
पत्नी : ज़ुलैख़ा
नागरिकता : भारतीय
प्रसिद्धि : स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, पत्रकार, समाजसुधारक, शिक्षा विशेषज्ञ
पार्टी : कांग्रेस
पद : भूतपूर्व शिक्षा मंत्री
भाषा : उर्दू, फ़ारसी और अरबी
पुरस्कार-उपाधि : भारत रत्न
विशेष योगदान : वैज्ञानिक शिक्षा को प्रोत्साहन, कई विश्वविद्यालयों की स्थापना, उच्च शिक्षा और खोज को प्रोत्साहन, स्वाधीनता संग्राम

रचनाएँ : इंडिया विन्स फ्रीडम अर्थात् भारत की आज़ादी की जीत, क़ुरान शरीफ़ का अरबी से उर्दू में अनुवाद, तर्जुमन-ए-क़ुरान, ग़ुबारे-ए-खातिर, हिज्र-ओ-वसल, खतबात-ल-आज़ाद, हमारी आज़ादी और तजकरा

      मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन  एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के वाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय नेशनल काग्रेंस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने। वे 1940 और 1945 के बीच काग्रेंस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के वाद वे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने।                                वे धारासन सत्याग्रह के अहम इन्कलाबी (क्रांतिकारी) थे। वे 1940-45 के बीट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जिस दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन हुआ था। कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं की तरह उन्हें भी तीन साल जेल में बिताने पड़े थे। स्वतंत्रता के बाद वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना में उनके सबसे अविस्मरणीय कार्यों में से एक था।

💁‍♂ जीवन
             मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। उनकी माँ अरबी मूल की थीं और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी (ईरानी, नृजातीय रूप से) थे। मोहम्मद खैरुद्दीन और उनके परिवार ने भारतीय स्वतंत्रता के पहले आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का चले गए। वहाँ पर मोहम्मद खॅरूद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई। मोहम्मद खैरूद्दीन 1890 में भारत लौट गए। मौहम्मद खैरूद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली। जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया। उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई। घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया। इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास तथा गणित की शिक्षा भी अन्य गुरुओं से मिली। आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की। सोलह साल उन्हें वो सभी शिक्षा मिल गई थीं जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी।

तेरह साल की आयु में उनका विवाह ज़ुलैखा बेग़म से हो गया। वे देवबन्दी विचारधारा के करीब थे और उन्होंने क़ुरान के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे। आज़ाद ने अंग्रेज़ी समर्पित स्वाध्याय से सीखी और पाश्चात्य दर्शन को बहुत पढ़ा। उन्हें मुस्लिम पारम्परिक शिक्षा को रास नहीं आई और वे आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों से सहमत थे।

📰 क्रांतिकारी और पत्रकार
            आजाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ थे। उन्हेंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो उनके अनुसार देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरज़ीह दे रहे थे। अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ कर दिया। उन्होंने ईरान, इराक़ मिस्र तथा सीरिया की यात्राएं की। आजाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना आरंभ किया और उन्हें श्री अरबिन्दो और श्यामसुन्हर चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से समर्थन मिला।
          आज़ाद की शिक्षा उन्हे एक दफ़ातर (किरानी) बना सकती थी पर राजनीति के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें पत्रकार बना दिया। उन्होने 1912 में एक उर्दू पत्रिका अल हिलाल का सूत्रपात किया। उनका उद्येश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था। उन्होने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार तथा बंबई में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीता। उन्हें 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी।

🚷 असहयोग आन्दोलन
               जेल से निकलने के बाद वे जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोधी नेताओं में से एक थे। इसके अलावा वे खिलाफ़त आन्दोलन के भी प्रमुख थे। खिलाफ़त तुर्की के उस्मानी साम्राज्य की प्रथम विश्वयुद्ध में हारने पर उनपर लगाए हर्जाने का विरोध करता था। उस समय ऑटोमन (उस्मानी तुर्क) मक्का पर काबिज़ थे और इस्लाम के खलीफ़ा वही थे। इसके कारण विश्वभर के मुस्लिमों में रोष था और भारत में यह खिलाफ़त आंन्दोलन के रूप में उभरा जिसमें उस्मानों को हराने वाले मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, इटली) के साम्राज्य का विरोध हुआ था।
गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया।

🇮🇳 आज़ादी के बाद
         स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान' अर्थात 'आई.आई.टी.' और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकिसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।

संगीत नाटक अकादमी (1953)
साहित्य अकादमी (1954)
ललितकला अकादमी (1954)
केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सारभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की।

📜 पुरस्कार
     उन्हे वर्ष 1992 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
          🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳

🙏🌹 विनम्र अभिवादन 🌹🙏
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बुधवार, १० नोव्हेंबर, २०२१

नवोपक्रम स्पर्धेला मुदत वाढ...

राज्यस्तरीय नवोपक्रम स्पर्धा २०२१-२२ ला १० नोव्हेंबर पर्यंत मुदत देण्यात आली होती. नुकत्याच आलेल्या परिपत्रकानुसार त्यास २५ नोव्हेंबर पर्यंत मुदतवाढ देण्यात आलेली आहे....
सविस्तर वाचण्यासाठी खालील परिपत्रक वाचा...

QR Code म्हणजे काय ?

QR code म्हणजे काय ?

संग्राहक - श्री अविनाश पाटील 

बापूसाहेब डी. डी. विसपूते माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय वलवाडी ता. जि. धुळे

(मायाजाल वरून साभार)

तुम्हाला माहिती आहे का QR code म्हणजे काय (What is QR code in Marathi). तुम्ही कधी ना कधीतरी नक्कीच QR code पहिला असेल, कदाचित त्याचा वापर देखील केला असेल. तुम्ही हा QR code बहुदा एखाद्या product वर किंवा मग एखाद्या कंपनीच्या डॉक्युमेंट मध्ये पहिला असेल.

तुम्हाला सुरुवातीला QR code पाहिल्यानंतर नक्कीच याबाबत जाणून घेण्याची उत्सुकता वाटली असेल. QR code म्हणजे काय? त्याचा वापर कसा केला जातो, QR code ला मोबाईल मध्ये कसे स्कॅन करतात आणि सर्वात महत्त्वाचे म्हणजे या कोडमध्ये कोणती माहिती साठवली जाते?

यासारखे प्रश्न जर तुमच्याही मनात असतील तर चिंता करू नका. या पोस्टमध्ये तुम्हाला QR code म्हणजे काय (What is QR code in Marathi) याबद्दल सविस्तर माहिती मिळेल

QR code म्हणजे काय? (What is QR code in Marathi)

What is QR code in marathi
Qr code म्हणजे काय

QR code एक चौरासाकृती आकृती असते ज्यावर पांढरा पृष्ठभागावर काळे छोटे चौरासाकृती ठिपके असतात. ज्यामध्ये encoded विशेष माहिती साठवली जाते. या QR code मध्ये एखादा फोटो असू शकतो, व्हिडिओ असू शकतो किंवा एखाद्या प्रॉडक्ट किंवा मग कंपनी बद्दल माहिती देखील असू शकते.

हे कोड एक प्रकारचे bar code आहेत फक्त ते bar code पेक्षा जास्त प्रगत आहेत. आपण यात bar code पेक्षा जास्त माहिती साठवून ठेवू शकतो आणि हे वापरण्यास देखील खूप सुरुक्षित आहेत.

या QR code मध्ये बहुदा embedded url असतो. म्हणजे यामध्ये एखादी वेबसाइट लिंक केलेली असते. जसे ही आपण या कोड ला स्कॅन करतो आपण डायरेक्ट त्या वेबसाइट वर redirect होतो आणि त्या वेबसाइट वरील माहिती आपल्याला वाचायला मिळते.

बहुदा या Qr कोड मध्ये वेबसाइट चा about us पेज लिंक असतो ज्याद्वारे कोड स्कॅन करणाऱ्या व्यक्तीला त्या प्रॉडक्ट किंवा कंपनी बद्दल माहिती मिळते.

QR code चा उपयोग कुठे होतो? (Uses of QR code)

QR code चा उपयोग जवळपास सर्वत्र केला जातो. सुरुवातीला या QR code चा उपयोग पहिल्यांदा जपानमधील एका कंपनीने प्रॉडक्ट ला ट्रॅक करण्यासाठी केला होता. पण हा code वापरणं खूप सोपं आणि फायदेशीर असल्याचे लक्षात आल्यानंतर या कोड ला सर्वत्र वापरण्यास सुरुवात झाली.

या QR code चा वापर प्रॉडक्ट ल ट्रॅक करण्यासाठी तसेच उपभोक्ता ला प्रॉडक्ट बद्दल माहिती देण्यासाठी केला जातो. तसेच या कोड मध्ये प्रॉडक्ट ची किंमत देखील साठवलेली असते.

Online shopping सुरू झाल्यापासून QR code चा वापर फार जास्त वाढला आहे. तुम्ही जर मॉल मध्ये वस्तू व पदार्थांची खरेदी करत असाल तर तुम्ही तेथे पाहिले असेल की वस्तूंचे बिल करताना काउंटर वर फक्त QR code स्कॅन केले जातात आणि सर्व वस्तूंच्या एकूण किमतीचे बिल तुम्हाला दिले जाते.त्यामुळे तुमचा वेळही वाचतो आणि अचूक किमतीची पावतीही मिळते.

हे देखील वाचा:

तसेच आजकाल online payment आणि digital payments सारख्या संकल्पना ऑनलाईन व्यवहारामध्ये खूप मोठ्या प्रमाणात वापरताना दिसत आहेत. तुम्ही देखील google pay, phone pay, paytm यासारख्या मोबाईल ऍप चा वापर ऑनलाईन पैसे पाठवण्यासाठी केला असेल. यामध्ये देखील युजरची आयडी स्कॅन करण्यासाठी QR code चा उपयोग केला जातो.

QR code full form in marathi

QR code एक आधुनिक बारकोड आहे. QR code full form आहे Quick Response code. हा कोड बारकोड पेक्षा खूप जास्त जलद असतो आणि माहिती साठवण्याची क्षमताही बारकोड पेक्षा जास्त असते.त्यामुळे आज जवळपास सर्वच ठिकाणी बारकोड ऐवजी QR code चा वापर केला जात आहे.

QR code चे प्रकार (Types of QR code in marathi)

तुम्ही जे आजपर्यंत QR code पाहिले आहेत ते सर्व एकच नसून QR code चे वेगवेगळे प्रकार आहेत. पण पाहिल्यानंतर जवळपास सर्वच QR कोड ची संवरचना ही सारखीच भासते. पण असे असले तरीही त्यांची माहिती साठवण्याचा प्रकार व क्षमता वेगवेगळी आहे.

QR कोडची संरचना आणि त्यांचा वापर यावर आधारित QR code चे मुख्य खालील दोन प्रकार आहेत:

  1. Static QR code
  2. Dynamic QR code

 Static QR code

Static qr code हे uneditable असतात.म्हणजेच त्यांना एखदा तयार केल्यानंतर त्यांच्यातील सामग्री किंवा माहिती नंतर बदलता येत नाही. त्यामुळे या प्रकारच्या कोडमध्ये एखादी वेबसाईट किंवा ऍप्लिकेशन embed केलेले असते.

हा QR कोड स्कॅन केल्यानंतर आपण त्या वेबसाईट किंवा ऍप्लिकेशन वर redirect होतो. त्यामुळे आपल्याला जर यातील माहिती बदलायची असेल तर आपण त्या qr code मध्ये जी वेबसाईट किंवा ऍप्लिकेशन embed केलेले आहे त्यातील माहिती बदलून करू शकतो.

या QR code च्या निर्मात्याला त्याला स्कॅन केलेल्या व्यक्तीची पूर्ण माहिती मिळू शकत नाही.

Dynamic QR code

हे QR कोड static QR कोड पेक्षा जास्त प्रगत आहेत. कारण यात साठवलेली माहिती नंतर आवश्यकतेनुसार बदलता येते. त्यामुळे यात व्हिडिओ, फोटो, माहिती साठवली जाते.

तसेच हा कोड स्कॅन करणाऱ्या व्यक्तीची सर्व आवश्यक माहिती Qr code निर्मात्याला मिळते. जसे की –

  • त्या व्यक्तीचे नाव
  • ईमेल आयडी
  • Device name
  • Location

QR code कसा स्कॅन करावा ? ( How to scan QR code on mobile)

What is QR code in marathi
QR code म्हणजे काय

पूर्वी QR code स्कॅन करण्यासाठी मोठे स्कॅनर वापरावे लागायचे . पण आज क्यूआर कोड स्कॅन करणे खुप सोपे झाले आहे. तुम्ही तुमच्या मोबाईलच्या मदतीने अगदी सहजपणे QR कोड स्कॅन करू शकता.

यासाठी playstore वर QR code स्कॅन करण्यासाठी Qr code scanner आणि barcode scanner सारखे अनेक ऍप्लिकेशन उपलब्ध आहेत. यातील कोणत्याही ऍप द्वारे तुम्ही qr code स्कॅन करू शकता आणि त्यातील माहिती मिळवू शकता.

QR code कसा तयार करावा ?

तुम्ही अगदी सहजपणे तुमच्या मोबाईलवर QR कोड बनवू शकता. त्यासाठी गूगलवर अनेक QR code generator वेबसाइट्स आहेत ज्यांच्या मदतीने तुम्ही तुमचा QR कोड बनवू शकता.

पण Qr कोड बनवण्या अगोदर तुम्हाला निश्चित करावे लागेल की तुम्हाला कशासाठी हा कोड बनवायचा आहे व यामध्ये कोणत्या प्रकारची माहिती साठवून ठेवायचे आहे.

त्यानुसार तुम्ही मग static किंवा dynamic यापैकी एका QR code ची निवड करू शकता. यासाठी मी काही खाली Qr code तयार करण्यासाठी websites देत आहे.

Best Qr code generator websites:

  1. Visualead
  2. QRstuff
  3. QR code monkey
  4. QR zebra
  5. QR code generator

यातील कोणत्याही एका QR code generator tool च्या मदतीने तुम्ही स्वतःचा QR कोड अगदी काही क्षणात तयार करू शकता.

QR कोड चे फायदे आणि उपयोग :

  • QR कोडच्या मदतीने तुम्ही तुमच्या प्रॉडक्टची माहिती उपभोक्ता ला देऊ शकता
  • QR code च्या मदतीने तुम्ही मॉलमध्ये वस्तूंच्या किमतीची पावती लवकर मिळवू शकता
  • तुम्ही यामध्ये तुमची वेबसाईट किंवा ऍप्लिकेशन लिंक करू शकता
  • Google pay, paytm यासारख्या ऍपमध्ये तुम्ही QR कोड स्कॅन करून सहज पैसे पाठवू शकता 
  • तसेच तुम्ही या मध्ये एखादा व्हिडिओ किंवा मग ऑडियो देखील स्टोअर करून ठेऊ शकता

निष्कर्ष :

आजच्या पोस्टमध्ये आपण QR कोड बद्दल संपूर्ण माहिती जाणून घेतली जसे की QR code म्हणजे काय? (what is qr code in marathi), Qr कोड कसा तयार करावा, कसा स्कॅन करावा, QR code चे फायदे आणि उपयोग, इत्यादी.

मित्रांनो या ब्लॉगवर मी अश्याच प्रकारची उपयुक्त माहिती देण्याचा प्रयत्न करीत असतो. तुम्ही नियमित नवीन लेख वाचण्यासाठी आमच्या ब्लॉगला अवश्य भेट देत रहा, धन्यवाद…!!!

मंगळवार, ९ नोव्हेंबर, २०२१

यशोगाथा थोरांची - महर्षी धोंडो केशव कर्वे

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संकलन ~ श्री अविनाश पाटील 
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     भारतरत्न धोंडो केशव कर्वे
(भारतीय समाजसुधारक, महिला सशक्तिकरण)


       जन्म : १८ एप्रिल १८५८
               (शेरवली , मुरुड)
       मृत्यू : ९ नोव्हेंबर १९६२
            (हिंगणे आश्रम ,पुणे)

टोपणनाव : अण्णासाहेब
चळवळ : स्त्री शिक्षण आणि 
               सामाजिक सुधारणा
पुरस्कार : भारतरत्‍न
प्रमुख स्मारके : हिंगणे पुणे
धर्म : हिंदू
वडील : केशव बापूराव कर्वे
आई : लक्ष्मीबाई केशव कर्वे
पत्नी : राधाबाई धोंडो कर्वे ,  
           आनंदीबाई धोंडो कर्वे
अपत्ये : रघुनाथ ,भास्कर , दिनकर
                         धोंडो केशव कर्वे  महिलांचे शिक्षण, त्यांचे हक्क, विधवा-पुनर्विवाह यांसाठी आपले १०४ वर्षांचे जीवन वाहिलेल्या धोंडो केशव उर्फ अण्णासाहेब उर्फ महर्षी कर्वे यांचा जन्म १८ एप्रिल, इ.स. १८५८ साली रत्‍नागिरी जिह्याच्या खेड तालुक्यातील शेरावली या गावी एका निम्न मध्यमवर्गीय घरात झाला. इ.स. १९०७ साली त्यांनी महाराष्ट्रात पुण्याजवळील हिंगण्याच्या माळरानावर एका झोपडीत मुलींची शाळा सुरू केली.

🙎‍♂ बालपण आणि तारुण्य संपादन
        रत्‍नागिरी जिल्ह्यातील मुरूड हे अण्णांचे गाव. शिक्षणासाठी त्यांना खूप पायपीट करावी लागली. इ.स. १८८१ मध्ये मॅट्रिक झाल्यानंतर त्यांनी मुंबईच्या एल्फिन्स्टन कॉलेजमध्ये प्रवेश घेतला. त्या कॉलेजातून त्यांनी गणिताची पदवी संपादन केली. वयाच्या चौदाव्या वर्षी त्यांचा राधाबाईंशी विवाह झाला. राधाबाई त्या वेळी ८ वर्षांच्या होत्या. वयाच्या २७व्या वर्षी, इ.स. १८९१ साली बाळंतपणात राधाबाईंचा मृत्यू झाला. त्याच वर्षी अण्णासाहेबांनी फर्ग्युसन कॉलेजात गणित शिकवायला सुरुवात केली. पुढे इ.स. १९१४पर्यंत त्यांनी ही नोकरी केली. अण्णा गणिती होते. लोकमान्य टिळक हे फर्ग्युसन महाविद्यालयात गणिताचे अध्यापन करीत होते. पण राजकारणाच्या रणधुमाळीत ते उतरल्यानंतर त्यांच्या रिकाम्या जागी गणित विभागाचे प्रमुख असणारे गोपाळ कृष्ण गोखले यांनी अण्णांना बोलावून घेतले. इ.स. १८९१ ते इ.स. १९१४ या प्रदीर्घ कालखंडात अण्णांनी गणित हा विषय शिकवला.

👫 पुनर्विवाह
         त्यांच्या सहचारिणी राधाबाई कालवश झाल्या त्या वेळी अण्णांचे वय पंचेचाळीसच्या आसपास होते. प्रौढ वयात विधुर झालेल्या पुरुषानेही अल्पवयीन कुमारिकेशीच लग्न करण्याची त्या काळात प्रथा होती. लहान वयात मुलींची लग्ने होत, पण दुर्दैवाने पती लवकर मरण पावला तर त्या मुलीला मात्र त्याची विधवा म्हणून उर्वरित आयुष्य घालवावे लागे. ही समाज रीत नाकारणाऱ्या अण्णांनी पंडिता रमाबाईंच्या शारदा सदन संस्थेत शिकणाऱ्या गोदूबाई या विधवा मुलीशी पुनर्विवाह केला. ही गोष्ट काळाला मानवणारी नव्हती. अण्णा पत्‍नीसह मुरूडला गेल्यानंतर अण्णांवर सामाजिक बहिष्कार टाकण्याचा ठराव संमत झाला. याच गोदूबाई पुढे आनंदी कर्वे किंवा बाया कर्वे म्हणून ख्यातनाम झाल्या. अण्णासाहेबांच्या कार्यात बाया कर्वे यांचा सक्रिय वाटा होता.

अण्णांचा पुनर्विवाह ही व्यक्तिगत बाब नव्हती. घातक सामाजिक प्रथांविरुद्ध केलेले ते बंड होते. पुनर्विवाहासाठी लोकमताचे जागरण करावे, या हेतूने २१ मे, इ.स. १८९४ या दिवशी अण्णांनी पुनर्विवाहितांचा एक कुटुंबमेळा घेतला. याच सुमारास अण्णांनी ‘विधवा विवाह प्रतिबंध निवारक‘ मंडळाची स्थापना केली. विधवा-विवाहाला विरोध करणाऱ्या प्रतिगामी प्रवृत्तींना आवर घालणे हे या मंडळाचे काम होते. बालविवाह, जरठ-कुमारी विवाह, केशवपन यासारख्या अन्याय्य रूढींत अडकलेल्या अनिकेत स्त्रियांना मोकळा श्वास मिळावा म्हणून इ.स. १८९६ मध्ये अण्णांनी सहा विधवा महिलांसह ‘अनाथ बालिकाश्रम‘ काढला. ‘विधवा विवाहोत्तेजक‘ मंडळाची स्थापना केली. रावबहादूर गणेश गोविंद गोखले यांनी अण्णांचे हे उदात्त कार्य पाहून हिंगणे येथील आपली सहा एकरांची जागा आणि रु. ७५० संस्थेच्या उभारणीसाठी अण्णांकडे सुपूर्द केले. या उजाड माळरानावर अण्णांनी एक झोपडी बांधली. ही पहिलीवहिली झोपडी ही हिंगणे स्त्रीशिक्षण संस्थेची गंगोत्री. आज अनेक वास्तूंनी गजबजून गेलेल्या या वैभवसमृद्ध परिसरात अण्णांची झोपडी त्यांच्या तपाचे महाभारत जगाला सांगत उभी आहे.
 
कार्य
              इ.स. १९०० मध्ये अनाथ बालिकाश्रमाचे स्थलांतर हिंगण्यास करण्यात आले. याच परिसरात अण्णांनी विधवांसाठी एक हक्काची सावली निर्माण केली. विधवांचे हे वसतिगृह ही एक सामाजिक प्रयोगशाळा होती.

स्त्रियांवर होणारे अत्याचार, त्यांना दिली जाणारी दुय्यम दर्जाची वागणूक यांचा त्यांना कायम राग येत असे. पंडिता रमाबाई आणि ईश्वरचंद्र विद्यासागर यांच्या जीवनकार्यांमुळे अण्णासाहेब खूपच प्रभावित झाले होते. थोर तत्त्वज्ञ हर्बर्ट स्पेन्सर यांच्या विचारांचाही त्यांच्यावर पगडा होता.
                        इ.स. १८९६मध्ये अण्णासाहेबांनी पुण्याजवळील हिंगणे (आता कर्वेनगर) या गावी विधवा महिलांसाठी आश्रम स्थापन केला. या आश्रमात याच ठिकाणी इ.स. १९०७ साली महिला विद्यालयाची स्थापना त्यांनी केली. अण्णासाहेबांची २० वर्षांची विधवा मेहुणी - पार्वतीबाई आठवले - या विद्यालयाच्या पहिल्या विद्यार्थिनी होत. आश्रम आणि शाळा या दोन्हींसाठी लागणारे कुशल मनुष्यबळ निर्माण करण्यासाठी त्यांनी '`निष्काम कर्म मठा'ची स्थापना इ.स. १९१० साली केली. स्रियांना आपल्या आवडीनुसार शिक्षण घेता यावे यासाठी त्यांनी आरोग्यशास्त्र, शिशूसंगोपन, गृह्जीवन शास्त्र, आहार शास्त्र असे विषय अभ्यासक्रमामध्ये ठेवले. यामूळे स्त्रियांच्या सर्वांगिण विकासाला चालना मिळाली. 
           पुढे या तिन्ही संस्थांचे कार्य उत्तरोत्तर वाढत गेल्याने त्याचे एकत्रीकरण करून `'हिंगणे स्त्री शिक्षण संस्था' आणि त्यानंतर `महर्षी कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था' असे त्याचे नामकरण करण्यात आले. १९९६साली त्यांच्या कार्यारंभाला १०० वर्षे पूर्ण झाली म्हणून महर्षी कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था दरवर्षी शैक्षणिक आणि सामाजिक कार्य करणाऱ्या स्त्रीला बाया कर्वे पुरस्कार देते.
                 अर्थात, हे सगळे काही सहजसाध्य नव्हते हे नक्कीच. या कार्यामुळे कर्मठ, सनातन पुणेकरांचा त्यांना रोष पत्करावा लागला. संस्था चालविण्यासाठी पैसे अपुरे पडत असल्याने कित्येक वर्ष अण्णासाहेबांना हिंगणे ते फर्ग्युसन कॉलेज पायी प्रवास करावा लागत असे. आपल्या संस्थांसाठी कुणाकडे देणगी मागायला गेल्यावर कित्येक वेळा त्यांना अत्यंत अपमानास्पद वागणूक मिळत असे. पण अत्यंत जिद्दीने त्यांनी आपले कार्य चालू ठेवले.
                       जपानच्या महिला विद्यापीठाला भेट दिल्यानंतर अण्णासाहेब अत्यंत प्रभावित झाले. त्यांनी पुण्यात भारतातील पहिल्या महिला विद्यापीठाची स्थापना १९१६ साली केली. पुढे विठ्ठलदास ठाकरसी यांनी १५ लाखांचे अनुदान दिल्याने या विद्यापीठाचे `श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी महिला विद्यापीठ' (एसएनडीटी) असे नामकरण करण्यात आले.
       अण्णासाहेबांनी अनेक परदेश दौरे केले. विशेषत: महिलांच्या सबलीकरणाचे आपले अनुभव त्यांनी आफ्रिकेतही जाऊन सांगितले. विधवा महिलांचे प्रश्न आणि त्यांचे शिक्षण यांव्यतिरिक्त जातिव्यवस्था आणि अस्पृश्यता यांच्या विरोधातही त्यांनी कार्य केले.

कर्वे यांची चारही मुले रघुनाथ, शंकर, दिनकर आणि भास्कर यांनीही पुढे वेगवेगळ्या क्षेत्रांमध्ये भरीव कार्य केले.

मराठी (आत्मवृत्त, इ.स. १९२८) आणि इंग्रजी (लुकिंग बॅक, इ.स. १९३६) अशा दोन्ही भाषांमध्ये त्यांनी आत्मचरित्र लिहिले. स्त्री शिक्षणासाठी कर्वे यांनी खूप मोलाचे कार्य केले.

🏢 श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी या विद्यापीठची स्थापना
           त्यांनी एका जपानी महिला विद्यापीठाचे माहितीपत्रक पाहिले होते. त्यांच्या मनात भारतीय महिला विद्यापीठाचा विचार येत होता. विद्यापीठाची प्रस्तावना म्हणून त्यांनी माध्यमिक विद्यालयाची स्थापना केली. शिक्षण संस्थांभोवती कार्यकर्त्यांची तटबंदी असावी म्हणून इ.स. 1910 मध्ये ‘निष्काम कर्ममठ‘ या संस्कारपीठाची स्थापना केली.
                        इ.स. १९१५ मध्ये भरलेल्या अखिल भारतीय सामाजिक परिषदेचे अध्यक्षस्थान अण्णांनी भूषविले. अध्यक्षीय भाषणात त्यांनी ‘महिला विद्यापीठ‘ या कल्पनेचा पुनरुच्चार केला. ३ जून, इ.स. १९१६ रोजी महिला विद्यापीठाची स्थापना झाली. स्त्रीशिक्षणाची ही धारा विद्यापीठाच्या रूपाने विस्तार पावली. अंत्यजांना आणि स्त्रियांना दुर्बल घटक लेखून त्यांना विद्येपासून वंचित करणाऱ्या समाजात अण्णांनी आपल्या तपोबलावर हा चमत्कार घडविला. अण्णांच्या कर्तृत्वाने चकित आणि प्रभावित झालेल्या सर विठ्ठलदास ठाकरसी यांनी आपल्या मातोश्री,  नाथीबाई ठाकरसी यांच्या स्मरणार्थ या विद्यापीठास १५ लाख रुपयांची देणगी दिली. या ‘श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी‘ या विद्यापीठास सरकारने स्वतंत्र विद्यापीठाचा दर्जा दिला. अनेक प्रज्ञावंत महिलांनी विद्यापीठाचे कुलगुरुपद भूषविले. अण्णांना अभिप्रेत असणारे,  बोधवाक्य विद्यापीठाने शिरोधार्य मानले ते असे- ‘संस्कृता स्त्री पराशक्तिः‘ अण्णांच्या प्रयत्नाने अस्तित्वात आलेल्या प्रत्येक संस्थेचे भरणपोषण केले.
                 इंग्लंड, जर्मनी, जपान, अमेरिका या देशांना भेटी देऊन अण्णांनी आपल्या संस्थांची आणि संकल्पांची माहिती जगाला करून दिली. बर्लिनमध्ये असताना सापेक्षतावादाचे प्रणेते प्रा. अल्बर्ट आइनस्टाइन यांची त्यांनी भेट घेतली. त्यांनी बर्लिनमधली गृहविज्ञानशाळा पाहिली. टोकियोतील महिला विद्यापीठ पाहिले. अनेक राष्ट्रांत स्त्रियांनी चालविलेल्या संस्था पाहिल्या. त्या दर्शनाने सुचलेल्या अनेक नव्या योजना त्यांनी पूर्णत्वास नेल्या.,  अनेक भारतीय विद्यापीठांनी त्यांना डी.लिट. देऊन सन्मानित केले. `पद्मविभूषण' हा किताब त्यांना इ.स. १९५५ साली प्रदान करण्यात आला, तर लगेच इ.स. १९५८ साली त्यांना भारतातील सर्वोच्च नागरी सन्मान `भारतरत्‍न'ने सन्मानित करण्यात आले. एकशेचार वर्षांचे दीर्घायुष्य देऊन निसर्गानेही त्यांना सन्मानित केले. पुण्यातच ९ नोव्हेंबर, इ.स. १९६२ ला त्यांचे वृद्धापकाळाने निधन झाले. धोंडो केशव कर्वे हे आधुनिक महाराष्ट्रातील एक स्त्री सुधारणा करणारे म्हत्वाचे व्यक्तिमत्व आहे.
             आजही `कर्वे स्त्री शिक्षण संस्था' दिमाखात उभी आहे, उत्तरोत्तर प्रगती करीत आहे.

चरित्रे
                महर्षी धोंडो केशव कर्वे (लेखक - विलास खोले)     
          🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳

🙏🌹 विनम्र आभिवादन🌹🙏
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           स्त्रोत ~ WikipediA
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रविवार, ७ नोव्हेंबर, २०२१

यशोगाथा थोरांची - बिपीनचंद्र पाल

🖥️ महाराष्ट्र तंत्रस्नेही शिक्षक समूह 🖥️
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       🇮🇳 यशोगाथा थोरांची 🇮🇳
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संकलन ~ श्री अविनाश पाटील 
बापूसाहेब डी. डी. विसपूते माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय वलवाडी ता. जि. धुळे
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        बिपिन चन्द्र पाल

                                                                                                                (भारतीय क्रांतिकारी) 
      जन्म : 7 नवंबर, 1858
(हबीबगंज ज़िला, (वर्तमान बांग्लादेश)
      मृत्यु : 20 मई, 1932
नागरिकता : भारतीय
प्रसिद्धि : स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षक, पत्रकार, लेखक
पार्टी : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ब्रह्म समाज
विशेष योगदान : विपिन चन्द्र कांग्रेस के क्रान्तिकारी देशभक्तों लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल (लाल बाल पाल) की तिकड़ी का हिस्सा थे।
आंदोलन : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
अन्य जानकारी : 'वंदे मातरम्' पत्रिका के संस्थापक रहे बिपिन चंद्र पाल एक समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने परिवार के विरोध के बावज़ूद एक विधवा से विवाह किया था।
             बिपिन चंद्र पाल  का नाम भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में 'क्रान्तिकारी विचारों के जनक' के रूप में आता है, जो अंग्रेज़ों की चूलें हिला देने वाली 'लाल' 'बाल' 'पाल' तिकड़ी का एक हिस्सा थे।

👱‍♂️ जन्म
         बंगाल में हबीबगंज ज़िले के पोइल गाँव (वर्तमान में बांग्लादेश) में 7 नवम्बर 1858 को जन्मे विपिन चन्द्र पाल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह शिक्षक और पत्रकार होने के साथ-साथ एक कुशल वक्ता और लेखक भी थे। इतिहासकार वी. सी. साहू के अनुसार विपिन चन्द्र कांग्रेस के क्रान्तिकारी देशभक्तों लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल (लाल बाल पाल) की तिकड़ी का हिस्सा थे, जिन्होंने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया था।      
💁‍♂️ जीवन परिचय
                'वंदे मातरम्' पत्रिका के संस्थापक रहे पाल एक बड़े समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने परिवार के विरोध के बावज़ूद एक विधवा से शादी की। बाल गंगाधर तिलक की गिरफ़्तारी और 1907 में ब्रितानिया हुकूमत द्वारा चलाए गए दमन के समय पाल इंग्लैंण्ड गए। वह वहाँ क्रान्तिकारी विधार धारा वाले 'इंडिया हाउस' से जुड़ गए और 'स्वराज पत्रिका' की शुरुआत की। मदन लाल ढींगरा के द्वारा 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दिये जाने के कारण उनकी इस पत्रिका का प्रकाशन बंद हो गया और लंदन में उन्हें काफ़ी मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ा। इस घटना के बाद वह उग्र विचारधारा से अलग हो गए और स्वतंत्र देशों के संघ की परिकल्पना पेश की। पाल ने कई मौक़ों पर महात्मा गांधी की आलोचना भी की। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में पाल ने अध्यक्षीय भाषण में गांधीजी की आलोचना करते हुए कहा था-
आप जादू चाहते हैं, लेकिन मैं तर्क में विश्वास करता हूँ। आप मंत्रम चाहते हैं, लेकिन मैं कोई ऋषि नहीं हूँ और मंत्रम नहीं दे सकता।
🇮🇳 आजादी में योगदान
                    वंदे मातरम् राजद्रोह मामले में भी अरबिंदो घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने से इंकार करने के कारण वह छह महीने जेल में रहे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में पाल की जन्मशती के मौक़े पर अपने सम्बोधन में उन्हें एक ऐसा महान् व्यक्तित्व क़रार दिया, जिसने धार्मिक और राजनीतिक मोर्चों पर उच्चस्तरीय भूमिका निभाई। पाल ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान विदेशी कपड़ों की होली जलाने और हड़ताल जैसे आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई।

🪔  निधन
               विपिनचन्द्र पाल 1922 में राजनीतिक जीवन से अलग हो गए और 20 मई, 1932 में अपने निधन तक राजनीति से अलग ही रहे।
                                                                                               
          🇮🇳 जयहिंद 🇮🇳

🙏🌹 विनम्र अभिवादन🌹🙏
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 स्त्रोत~bharatdiscovery.org
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शनिवार, ६ नोव्हेंबर, २०२१

भाऊबीज

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             भाऊबीज


भाऊबीज हा हिंदुधर्मीय भाऊ-बहीण साजरा करीत असलेला एक सण आहे. हा सण कार्तिक शुद्ध द्वितीया(यमद्वितीया) या दिवशी असतो. हा महाराष्ट्रीयन पद्धतीच्या दिवाळीतला सहावा दिवस असतो. या सणास हिंदीत भाईदूज म्हणतात.

या दिवशी बहिणीच्या किंवा स्वतःच्या घरी भाऊ गोडधोड भोजन करतो आणि सायंकाळी चंद्राची कोर दिसल्यानंतर बहीण प्रथम चंद्रकोरीस व नंतर भावाला ओवाळते. भाऊ मग ओवाळणीचे ताटात 'ओवाळणी' देऊन बहिणीचा सत्कार करतो.

 या दिवशी बहीण भावाला आरती ओवाळून त्याची पूजा करीत असते. त्याला प्रेमाचा टिळा लावते. तो टिळा बहिणीच्या निस्वार्थी प्रेमभावना व्यक्त करीत असतो. भावाची पूजा म्हणजे यमराजाच्या पाशातून म्हणजे मृत्यूपासून भावाची सुटका व्हावी व तो चिरंजीव राहावा हा यामागचा उद्देश असतो. भाऊ आपल्या यथाशक्तीप्रमाणे पैसे कापड दागिना असे वस्तू ओवाळणी टाकतो. या दिवशी घरी जेवण करू नये व पत्नीच्या हातचे जेवण करू नये असे धर्मग्रंथात सांगितले आहे. जवळचा किंवा दूरचा भाऊ नसल्यास चांदोबास ओवाळण्याची पद्धत आहे. आपल्या सणामागे असलेल्या कल्पनांचा विशाल पण यावरून दिसून येते.
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 श्री अविनाश पाटील उपशिक्षक 
बापूसाहेब डी. डी. विसपूते माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय वलवाडी ता. जि. धुळे 
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बैलपोळा विशेष

               बैलपोळा   सर्व शेतकरी कष्टकरी बांधवांना खुप खुप शुभेच्छा.        श्रावण अमावास्येला पिठोरी अमावस्या म्हणतात. परंप...